सनातन संस्कृति में ईश्वर की पूजा करने के लिए सुबह का समय सूर्योदय से पहले का समय बहुत ही शुभ माना जाता है। इस समय को ब्रह्म मुहूर्त भी कहा जाता है। सुबह का यह ब्रह्म मुहूर्त का समय सुबह 4:00 बजे से 5:00 या 5:30 बजे के बीच का होता है। इस समय की पूजा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। क्योंकि इस समय रात्रि खत्म हो रही होती है और सूर्योदय का समय होने वाला होता है। तो शास्त्रों में भगवान सूर्य नारायण का स्वागत पूजा से करने पर आपको ऊषा काल की तमाम सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
ब्रह्म मुहूर्त की पूजा के अतिरिक्त दिन में कुछ अन्य पूजा करने का समय भी निर्धारित किया गया है। जैसे-
- सुबह 9 बजे तक
- दोपहर की पूजा 12 बजे तक
- शाम को संध्या पूजा शाम 4:30 बजे से शाम 6 बजे के बीच
- और रात में शयन पूजा व आरती रात 9 बजे
दोपहर की पूजा का शास्त्रों में निषेध किया गया है। क्योंकि वह समय ईश्वर के विश्राम का माना गया है । इसलिए आप देखते होंगे कि दोपहर के समय प्रमुख मन्दिरों के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं।
सुबह की पूजा के लाभ
इस पूरे ब्रह्मांड में सूर्य ही सबसे बड़ा ऊर्जा का प्रदाता है और वह जब सुबह उदय होता है तो उसके प्रभाव से रात्रि अर्थात अंधकार का नाश हो जाता है। इसी तरह से सूर्य के उगने से पहले पूजा करने से हमारी नकारात्मकता और हमारे जीवन का जो तमस या अंधकार है उसका क्षय हो जाता है।
सूर्योदय के समय की किरणें बिना पलकें झपकाएं खुली आंखों से उगते सूर्य को देखने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। डिप्रेशन दूर होता है, जिससे मन को शांति मिलती है। इसके साथ ही साथ सुबह की किरणें त्वचा के लिए फ़ायदेमंद होती हैं। सुबह जल्दी उठने से आपकी मानसिक शक्ति और आत्म विश्वास बढ़ता है। और दिनभर ऊर्जा बनी रहती है। ऐसे समय में जब आप अपनी पूजा से भगवान सूर्य देव का जब स्वागत करते हैं तो आपका रक्त संचार तेज होता है और दिमाग तेज़ गति से चलता है। आपका अवसाद और तनाव कम होता है।
एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि अल सुबह अर्थात ब्रह्म मुहूर्त के समय वातावरण शांत और स्थिर रहता है। कोई कोलाहल नहीं और कोई प्रदूषण नहीं रहता है। इसलिए ऐसे समय में एकाग्रता जल्दी कायम होती है। इसलिए आपको सुबह चार बजे से पहले उठकर अपने नित्य कर्म से निवृत्त होकर पूजा के लिए तैयार हो जाना चाहिए। चाहे आप किसी मन्दिर में पूजा करते हों या आप अपने घर में ही पूजा कर रहे हैं। एक विशेष ध्यान यह रखना चाहिए कि पूजा करने से पहले मन्दिर की साफ सफाई विधिवत् की जाये।
पूजा करने से पहले कौन सा मंत्र बोला जाता है?
दैनिक जीवन में रोज सामान्य पूजा करने से पहले आपको अपने मन्दिर या पूजा स्थल की साफ सफाई करनी चाहिए उसके बाद स्वयं स्नान करके साफ वस्त्र पहनना चाहिए साफ सुथरे कपड़े पहन करके आप एक पवित्र आसन पर बैठें। और सबसे पहले अपनी बाहरी और आंतरिक शुद्धि के लिए निम्नलिखित मंत्र बोलें;
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
इस तरह मंत्र बोल करके आप अपने ऊपर पवित्र जल की छींटें डालें।
इसके बाद ईश्वर के निम्नलिखित नामों को याद करते हुए आप आचमन करें;
पूजा करने से पहले कुछ मंत्रों का जाप किया जाता है क्योंकि पूजा शुरू करने से पहले आचमन करना आवश्यक है। आचमन करते समय आप;
ॐ केशवाय नम:
ॐ नाराणाय नम:
ॐ माधवाय नम:
ॐ हृषीकेशाय नम:
इन मंत्रों का उच्चारण करें और जल की कुछ बूँदें क्रमशः अपने मुख में, सिर पर डालें और अंत में हाथ ॐ गोविंदाय नमः मंत्र बोलकर हाथ धो लें।
आपको यह याद रखना चाहिए कि भगवान विष्णु ही इस पूरे जगत के पालन-पोषण करने वाले हैं इसलिए आपको उनके स्मरण के बिना कभी भी कोई भी पूजा नहीं करनी चाहिए। अगर आप बहुत कुछ नहीं भी जानते हैं तो भी ऊँ हरि ऊँ कह करके आप अपनी पूजा शुरू कर सकते हैं। और अधिक जानकारी के लिए आप सबसे पहले इस प्रकार देवताओं को मंत्र बोलते हुए याद करें;
ऊं लक्ष्मीनारायणाय नम:।
ऊं उमामहेश्वराय नम:।
ऊं मातृ पितृ चरण कमलेभ्यो नम:।
ऊं इष्टदेवाताय नम:।
ऊं कुलदेवताय नम:।
ऊं ग्रामदेवताय नम:।
ऊं स्थान देवताय नम:।
ऊं वास्तुदेवताय नम:।
ऊं सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।
इन मंत्रों के उच्चारण करने के बाद आप अपनी पूजा को आगे बढ़ा सकते हैं।
इसके बाद आप अपने ईष्ट देव का आवाहन करिये और उनके लिए उचित आसन की व्यवस्था कीजिए। और अपने ईष्ट देव से आसन पर बैठने की प्रार्थना कीजिए फिर उनका पूजन कीजिए।
अगर आप संस्कृत का अध्ययन नही किये हैं तो आप सामान्य हिन्दी में या अपनी लोकल भाषा में देवता का आवाहन कर सकते हैं। इसके लिए कोई बहुत विद्वता की आवश्यकता नहीं है। जैसे आप अगर हनुमान जी की पूजा करते हैं तो उनको बुलाने के लिए इस प्रकार निवेदन कर सकते हैं।
कथा आरम्भ होत है सुनौ वीर हनुमान।
आय के आसन लीजिए तेजपुंज बलवान।।
भगवान आपकी श्रद्धा, भक्ति और विश्वास से और समर्पण से प्रसन्न होते हैं। वह स्वयं कुछ नहीं लेते, वह केवल आपका भाव देखते हैं अगर आप बड़े भक्ति भाव और समर्पण से ईश्वर की सेवा और पूजा करते हैं तो वह आपके ऊपर अवश्य प्रसन्न होते हैं। इसीलिए भगवान के बारे में कहा गया है कि वह भक्त से क्या अपेक्षा करते हैं? वह कहते हैं;
भाव का भूखा हूँ मैं, भाव ही एक सार है।
भाव से भजता मुझे जो, उसका भव से बेड़ा पार है।।
शाम को आरती कितने बजे करनी चाहिए?
भगवान की पूजा में आरती का बड़ा महत्व है। शाम को भगवान की दो बार आरती करने के लिए शास्त्र में विधान है। पहली सायंकालीन आरती शाम सूर्यास्त के समय 4:30 बजे से 6 बजे के मध्य करनी चाहिए और रात में ईश्वर की शयन आरती करने के 9 बजे रात में आरती करने का विधान बताया गया है।