आपको अपने घर में नित्य पूजा कैसे करनी चाहिए इसका कुछ विधान है जिसके बारे में मैं इस अंक में संक्षिप्त रूप में बताने का प्रयास कर रहा हूँ। वैसे तो पूजा कई तरह से और अलग अलग देवी देवताओं की अलग-अलग पूजा पद्धतियाँ हैं। मैं कुछ सामान्य दैनिक पूजा की विधियों का वर्णन करूँगा।
मनु महाराज ने अपनी स्मृति (2.176) में, याज्ञवल्क्य स्मृति से कुछ शताब्दियों पहले लिखा था कि दैनिक पूजा का एक क्रम निर्धारित है। इस क्रम में सबसे पहले नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद देवताओं, ऋषियों और पितरों को तर्पण अर्थात जल अर्पित करना चाहिए और उसके बाद फिर देव पूजन और होम, हवन, महायज्ञों और जप तप इत्यादि करना चाहिए।
नित्यं स्नानत्वा शु्चि कुर्याद देव -ऋषि-्पित्र तर्पणम्I
देवताभ्यर्चनं च -एव समिधादानम् एव -च II २-१७६
सनातन संस्कृति में ईश्वर की पूजा की विधि सामान्य तौर पर एक प्रकार से आपके घर आए हुए अतिथि के स्वागत- सत्कार की पुरानी परंपरा से मिलती जुलती है। जैसे आप अपने किसी अतिथि के आने पर उसकी सभी तरह से चिन्ता और व्यवस्था करते हैं। अतिथि की सभी सुख सुविधाओं का आप ध्यान रखते हैं उसी तरह से ईश्वर की सेवा और पूजा करना चाहिए।
भगवान की पूजा की कई विधाएं हैं इनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित परंपराओं में भगवान का पंचोपचार तथा षोड्शोपचार पूजन सबसे प्रमुख है। आप अपनी क्षमता, सुविधा और व्यवस्था के अनुसार किसी भी विधि से भगवान की नित्य पूजा कर सकते हैं। यदि आपके पास कोई भी व्यवस्था नहीं है। आपके पास कुछ भी नहीं है तो भी आप मानसिक पूजा कर सकते हैं। इसमें आप मन में ही भगवान को भौतिक पूजा की तरह से पूजा कर सकते हैं।
नित्य पूजा के लिए आप स्वयं का शुद्धीकरण करें और पवित्र मन से भगवान का ध्यान और प्रार्थना करें। इसके बाद जिस सामग्री से आप भगवान की पूजा अर्चना करना चाहते हैं, उसे भी शुद्ध और पवित्र कर लीजिए। इसके बाद आप स्वयं अपने लिये और सभी सामग्री के लिए दोनों में ही दिव्यता के भाव की कामना या प्रार्थना करें। सब तैयारी करने बाद ईश्वर का आवाहन कीजिए उसके बाद भगवान को आसन दीजिए। भगवान को उनकी मर्यादा के अनुसार उचित आसन पर बैठने की प्रार्थना कीजिए। इसके बाद भगवान को प्रणाम करके उनके पैर धोकर, साफ कपड़े से पैर पोछें। फिर भगवान को विभिन्न वस्तुओं से उनकी सेवा-सत्कार की भावना करना चाहिए। और मंत्र बोलते हुए ईश्वर की पूजा कीजिए।
नित्य पूजा में बोले जाने वाले मंत्र कौन से हैं?
सबसे पहले पवित्रता को धारण करने वाले मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
इस मंत्र के बोलते समय आप अपने अंदर पवित्रता के समावेश की भावना कीजिए कि आप अंदर और बाहर से पवित्र हो रहे हैं। नित्य पूजा के लिए वैदिक एवं लौकिक दोनों तरह के मंत्रों का महत्व होता है।
इसके बाद आप अपने आसन पर बैठकर पूजा शुरू करने से पहले आचमन करें। आचमन करते समय इन मंत्रों को बोलें।
‘ॐ केशवाय नम:,
ॐ नाराणाय नम:,
ॐ माधवाय नम:,
ॐ हृषीकेशाय नम:
इस तरह आचमन के बाद आप ॐ गोविंदाय नमः मंत्र बोलकर हाथ धो लें।
जलपात्र या कलश स्थापना मंत्र
ॐ गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि! सरस्वति!।
नर्म्मदे! सिन्धु कावेरि! जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
अस्मिन् कलशे सर्वाणि तीर्थान्यावाहयामि नमस्करोमि।
घी के दीपक की स्थापना के लिए मंत्र
वह्निदैवतायै दीपपात्राय नमः
ॐ भूर्भुवः स्वः दीपस्थदेवतायै नमः आवाहयामि सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि।
गौरी गणपति पूजन मंत्र
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।
गणेश का आवाहन-
हाथ में अक्षत लेकर
ॐ गणानां त्वा गणपति ँ हवामहे
प्रियाणां त्वा प्रियपति ँ हवामहे
निधीनां त्वा निधिपति ँ हवामहे
वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
एह्येहि हेरम्ब महेशपुत्र ! समस्तविघ्नौघविनाशदक्ष !।
पूजा के लिए मंत्र
श्री मन्महागणाधिपतये नमः।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।
उमामहेश्वराभ्यां नमः।
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
मातापितृचरणकमलेभ्यो नमः।
इष्टदेवताभ्यो नमः।
कुलदेवताभ्यो नमः।
ग्रामदेवताभ्यो नमः।
वास्तुदेवताभ्यो नमः।
स्थानदेवताभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
विश्वेशं माधवं ढुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम् ।
वन्दे काशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम् ।। 1।।
वक्रतुण्ड ! महाकाय ! कोटिसूर्यसमप्रभ ! ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव ! सर्वकार्येषु सर्वदा ।। 2।।
गायत्री मंत्र
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ
गुरु का ध्यान मंत्र
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
देव आवाहन मंत्र
(आप जिस किसी भी देवता की पूजा करना चाहते हैं तो उनका ध्यान करते हुए यह मंत्र बोलिये।)
तं देवाय आवाहयामि पूजयामि ध्यायामि
आसन मंत्र
अनेक रत्न संयुक्तं नाना मणि गणान्वितम
आसनं च यमा दत्तं गृहाण परमेश्वर ।
विसर्जन मंत्र
अमुक देवतां विसर्जयामि ।
क्षमा प्रार्थना मंत्र
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैन न जानामि, क्षम्यतां परमेश्वरः।।
मंत्र हीनं क्रिया हीनं, भक्ति हीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि, परिपूर्ण तदस्वमे।।
नित्य पूजा पाठ कैसे करें?
प्रत्येक पूजा के आरंभ से पहले इस प्रकार से कुछ क्रियाएं कर लेनी चाहिए;
- सबसे पहले अपनी आत्मशुद्धि, मंत्र बोलते हुए।
- इसके बाद आप अपने आसन की शुद्धि, और पवित्री धारण करें।
- इसके बाद आप पृथ्वी पूजन करें। फिर हाथ में जल, अक्षत, पुष्प और कुछ पैसे लेकर संकल्प करें।
- इसके बाद ऊपर बताये गये मंत्रो को बोलते हुए दीप पूजन, शंख पूजन, घंटा पूजन, स्वस्तिवाचन आदि करें।
पूजा के लिए भूमि, वस्त्र, आसन आदि सभी स्वच्छ, शुद्ध व पवित्र होंने चाहिए।
अपनी सामर्थ्य, सुविधा और आवश्यकता के हिसाब से चौक, रंगोली, मंडप आदि बना सकते हैं।
पूजा के लिए समय और मुहूर्त आदि का विचार करके आप पूजा करें तो उत्तम रहता है।
किसी भी पूजा के लिए हमेशा पूरब दिशा की ओर मुँह करके बैठिये।
यदि आप विवाहित हैं और घर में आप पति पत्नी दोनों स्वस्थ हो तो आप दोनों पत्नी पति एक साथ गाँठ बाँध कर पूजा करें। हमेशा ध्यान रहे कि पूजा के समय पत्नी पति के दाहिनी तरफ बैठे।
पूजा के समय जरूरत के हिसाब से अंगन्यास, करन्यास, मुद्रा आदि का उपयोग कीजिये।
उपसंहार
आप हमेशा पूजा से पहले स्नान-ध्यान करें और पवित्र मन से पूजा करें। आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पूजा के लिए एक निश्चित समय और जगह आप तय करें और रोज उसी समय पर पूजा करें। पूजा शुरू करने से पहले भगवान गणेश, विष्णु, गुरू को प्रणाम और ध्यान अवश्य करें। पूजा के लिए अलग माला का प्रयोग करें। हो सके तो पूजा काल में अखण्ड दीपक जलायें। यह अखण्ड दीपक पूरे पूजा के दौरान जलता रहे। इस दीपक को अपने बाईं तरफ़ और भगवान के दाईं तरफ़ रखें। पूजा के अंत में ‘दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।। गतं पापं गतं दु:खं गतं दारिद्रय मेव च। आगता: सुख-संपत्ति पुण्योऽहं तव दर्शनात्।। इस मंत्र का उच्चारण करके क्षमा याचना अवश्य करें।