हिंदू धर्म में ईश्वर की पूजा के अनेक विधान हैं वैदिक काल से हिन्दू धर्म में ईश्वर की पूजा यज्ञ, हवन, जप, तपस्या और बलि करके की जाती थी। धीरे-धीरे इस पूजा में परिवर्तन होता गया और आर्यों का समय आते-आते, सिंधु घाटी और हड़प्पा की सभ्यता तथा मोहनजोदड़ो की सभ्यता के समय तक मूर्ति पूजा का तरीका अपनाया जाने लगा। धीरे-धीरे मूर्ति पूजा के लिए मंदिरों की स्थापना होने लगी। इस तरह मूर्ति पूजा घरों में और मंदिरों में होनी शुरू हो गयी। लेकिन मंत्र जाप की विधि विधान कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। ऋग्वैदिक काल से आज तक मंत्र जाप का महत्व बरकरार है। हम अपने जीवन को सार्थक और उपयोगी बनाने के लिए मंत्र जाप करते हैं और जिस देवी या देवता का मंत्र जाप करते हैं उसके प्रति श्रद्धा और विश्वास के साथ जुड़ जाते हैं। और हमको यह विश्वास होता है कि ईश्वर के नाम या मंत्र का जाप करने से हमें ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद मिलता रहेगा। इसीलिए हम मंत्र जाप करते हैं।
सनातन संस्कृति में यह शास्त्रीय सिद्ध मत है कि आप पूजा, जप, तप करके ईश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके लिए आपको ईश्वर के नाम का सतत् स्मरण करने का अभ्यास करना चाहिए। ऐसा करके आप अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने की कोशिश करते हो।
जब आप ईश्वर के नाम या मंत्र का जप करते हैैं तो आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
सनातन धर्म यह कहा गया है कि ईश्वर का कोई भी पूजन या अनुष्ठान मंत्रों के बिना पूरा नहीं होता है। इसीलिए आपने देखा होगा कि हिन्दू धर्म में प्रत्येक अनुष्ठान में मंत्रों का उच्चारण अवश्य किया जाता है। यहाँ तक कि दाह संस्कार को भी सनातन परंपरा में एक संस्कार कहा गया है। और उस संस्कार में भी मंत्रो का उच्चारण किया जाता है। और इस संस्कार में घी और अन्य सामग्रियों की आहुति दी जाती है। वैदिक काल से ही सनातन धर्म में मंत्र उच्चारण और जाप करने की परंपरा रही है। धार्मिक शास्त्रों में मंत्र जाप का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक महत्व के साथ ही मंत्र जाप के कई वैज्ञानिक लाभ भी बताए गए हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए मंत्र जाप करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, हमारे सनातन शास्त्रों में यह कहा गया है कि देवता भी मंत्रों के वशीभूत होते हैं। और पहले के समय शिक्षा भी मंत्रों के रूप में याद करवा दी जाती थी। इस अवसर पर मैं महाभारत युद्ध में कर्ण और अर्जुन के युद्ध का दृश्य याद दिलाता हूँ। कर्ण को ब्रह्मास्त्र का ज्ञान था लेकिन वह मंत्र भूल गया इसलिए मारा गया। इसलिए यदि मंत्र जप का पूर्ण फल प्राप्त करना है तो इसके नियमों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी होता है।
मंत्र का जाप करने की विधि
किसी विशेष फल को प्राप्त करने के लिए आपको पहले उपयुक्त मंत्र का ज्ञान लेना चाहिए। इसके बाद उस मंत्र का जप करने की विधि समझ लेनी चाहिए। किसी भी मंत्र का जाप करने से पहले आपको संकल्प करना चाहिए। जब आप मंत्र जाप के लिए संकल्प बद्ध हो जायेंगे तो फिर आप उस संकल्प को पूरा करने के अवश्य ही मंत्र जाप करेंगे। संकल्प कर लेने के पश्चात ही मंत्र जप करें। तभी आपको सिद्धि प्राप्ति हो सकती है।
मंत्र जप के पूर्व अपने ईष्ट देव की दैनिक पूजा और आरती अवश्य करें। इष्टदेव की पूजा के बाद ही मंत्र जप करें।
आप एकाग्रचित्त होकर मंत्र जप करें। और मंत्र जप करते समय अपने मन और मस्तिष्क को कंट्रोल में रखें।
मंत्र जाप करने के लिए एक शांत स्थान पर आपको एक निश्चित समय पर संकल्प पूरा होने तक नियमित रूप से नियम बद्ध होकर जप करना चाहिए।
मंत्र जाप करने के समय कुछ सावधानियां अवश्य बरतनी चाहिए। जैसे-
- मंत्र जाप के समय छींकना खाँसना और ऊँघना नहीं चाहिए।
- आसन पर पैर फैलाकर नहीं बैठना चाहिए। आप पाल्थी मारकर अर्थात पद्मासन में बैठकर जाप करें।
- मंत्र जाप करने के समय ईर्ष्या, घृणा और क्रोध नहीं करना चाहिए। अपना ध्यान केवल जिस मंत्र का जप कर रहे हो उसी पर केन्द्रित करते रहना चाहिए।
मंत्र जाप तीन तरह से किया जाता है। प्रथम प्रकार का जप
वाचिक जप है- जब आप सस्वर मंत्र का उच्चारण करते है अर्थात आप मंत्र को पूरा बोलते हैं और आपके आसपास बैठा कोई व्यक्ति आपके मंत्र को सुन सकता है तो ऐसा मंत्र जाप वाचिक जाप की श्रेणी में आता है।
दूसरे तरह का मंत्र जाप उपांशु जप कहलाता है। – इस तरह के जप में आपकी जुबान और ओष्ठ हिलते हुए प्रतीत होते हैं और मंत्र का उच्चारण केवल स्वयं आपको को ही सुनाई देता है अन्य किसी को नहीं तो ऐसा जाप उपांशु जप की श्रेणी में आता है।
और तीसरे तरह का मंत्र जाप मानसिक जाप होता है। जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यह जाप केवल मन में किया जाता है।यह आप स्वयं भी नहीं सुन सकते हैं।
इस तरह जाप करने के लिए आपको सुखासन या पद्मासन में ध्यान मुद्रा लगानी चाहिए।
मंत्र जाप करने का सही समय
सनातन संस्कृति में कहा गया है कि ब्रह्म मुहूर्त अर्थात सुबह 4 बजे से लेकर सूर्योदय तक का समय मंत्र जाप करने के लिए अत्यंत शुभ होता है। इस समय मंत्र जाप करने से आपको सभी सुख, सौभाग्य, यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है। इसलिए आपको सुबह तीन बजे उठकर नित्य क्रिया कर्म से निवृत्त होकर अपने स्थान की, आसन की और घर की साफ सफाई विधिवत् करके 4 बजे तक जाप करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
मंत्र जाप करने का फायदे।
मंत्र जाप करने से आपको प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कई फायदे होते हैं। कुछ फायदे इस प्रकार हैं;
- मंत्र जाप करने आपका आत्मविश्वास की बढ़ता है। ईश्वर के प्रति विश्वास और समर्पण की भावना प्रबल होती है।
- आपकी एकाग्रता बढ़ती है। और स्मरण शक्ति का विकास होता है और आपके व्यक्तित्व का विकास होता है।
- मंत्र जाप करने से आपकी नकारात्मकता और आपके जीवन की अनिश्चितता और तमस या अंधकार का क्षय हो जाता है।
- आपके मन का डिप्रेशन दूर होता है, जिससे मन को शांति मिलती है। और आप दिनभर ऊर्जा बने रहते हैं। आपका मन और मस्तिष्क तेज़ गति से चलता है। आपका अवसाद और तनाव कम होता है।