भगवान को भोग लगाने का बड़ा की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। आप जो कुछ भी खा पी रहे हैं वह भगवान की कृपा से ही प्राप्त कर रहे हैं इसलिए उसे हम भगवान का प्रसाद भी कहते हैं।
आध्यात्मिक पक्ष यह कहता है कि आपको भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए भोजन को भगवान का प्रसाद मानकर ग्रहण करना चाहिए। और वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि आप भोजन को जिस भाव से ग्रहण करते हैं वैसे ही आपका मन, बुद्धि, दिमाग और शरीर बनता है। अगर आप बड़े भक्ति भाव और आदर सम्मान के साथ भोजन भगवान का प्रसाद मानकर ग्रहण करेंगे तो उससे आपको ढेर सारी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी। और आप प्रसन्न चित्त रहेंगे। इससे आपका व्यक्तित्व निखर कर सामने आएगा। और दूसरी तरफ अगर आप खीझ, गुस्सा और उतावलापन या बेमन से या अनमने मन से भोजन करते हैं तो आप नकारात्मक ऊर्जा के शिकार होते हैं। इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि आपके घर में जो भी अन्न का भोजन बने, आप सबसे पहले उसे भगवान को भोग लगाने के लिए अर्पण करें। उसके बाद उस भोजन को भगवान का प्रसाद मानकर ग्रहण परिवार के साथ या परिवार के साथ- साथ मित्रों के साथ मिलकर ग्रहण करें। भगवान को भोग लगाने से अन्न का कुप्रभाव या दोष नष्ट हो जाता है। और भगवान का प्रसाद मानकर ग्रहण करने पर आपका भाव भी पवित्र होता है।
अब आप यह प्रश्न कर सकते हैं कि यह कैसे हो सकता है। तो इसे आप इस तरह से समझ लीजिए कि आपने एक मिठाई की दुकान से दो पैकेट में बेसन के लड्डू लिए, उसमें से एक आपने मन्दिर में हनुमान जी को चढ़ा दिया तो मन्दिर के पुजारी ने उसमें से कुछ एक लड्डू निकाल कर और हनुमान जी मन्दिर से कुछ फूल आपके पैकेट में रख दिया तो अब वह भगवान का प्रसाद बन गया। लेकिन दूसरा लड्डू का डिब्बा जो प्रसाद नहीं बना तो क्या आप दोनों डिब्बों में समान भाव रखेंगे? जाहिर सी बात है कि जो प्रसाद वाला डिब्बा है उसे आप श्रद्धा पूर्वक रखेंगे लेकिन दूसरे डिब्बे के साथ भी क्या वही भाव रखेंगे? शायद नहीं। जब उस डिब्बे से लड्डू आप स्वयं खाते हो या अपने परिवार के लोगों या मित्रों को खिलाते हो तो वह लड्डू प्रसाद कहकर बाँटते हो और आप ढूंढ-ढूंढकर उस प्रसाद को ज्यादा से ज्यादा लोगों को खिलाने या बाँटने का प्रयास करते हो। इसलिए भगवान को भोग लगाया जाता है।
भगवान को भोग लगाने की विधि ?
भगवान को भोग लगाने के लिए, सोना, चांदी, तांबा, या पीतल आदि धातु का शुद्ध, साफ और पवित्र पात्र का प्रयोग आपको करना चाहिए। भगवान को मिट्टी या लकड़ी के बर्तन में भी भोग लगाया जा सकता है। लेकिन आपको कभी भी एल्यूमीनियम, लोहा, स्टील, या प्लास्टिक के बर्तन में भगवान को भोग नहीं लगाना चाहिए। इससे नकारात्मता में बढ़ती है।
भगवान को भोग लगाने के लिए आपका भाव पवित्र और निर्मल होना आवश्यक है। बिना भाव, गुस्सा, जल्दीबाजी और बेरुखी से भोग के लिए बनाया गया भोजन भगवान कभी स्वीकार नहीं करेंगे। आपका भाव इतना पवित्र और निर्मल होना चाहिए कि जैसे जितना पवित्र और निर्मल भाव शबरी और विदुरानी का था। भगवान ने उनके भक्ति भाव को देखा और उसी के प्रेम में वशीभूत हो गये। तो भीलनी के जूठे बेर और विदुरानी माँ वेदवती के हाथों से केले के छिलके भी खा लिए और वह उन्हें स्वादिष्ट लगे। लेकिन दुर्योधन की मेवा नही स्वीकार किया।
तो भोग के थाल को पवित्र मन से सजाकर भगवान के सामने प्रस्तुत करना चाहिए। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी दल का प्रयोग जरूर करना चाहिए इसके बिना भगवान विष्णु भोग को स्वीकार नहीं करेंगे।
भगवान को भोग लगाने का मंत्र
भगवान के सम्मुख भोग की थाली सजाकर रखने के बाद अगर आप भगवान के लिए परदे का उपयोग करते हैं तो परदा खींचकर भगवान से भोग लगाने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। साथ ही साथ यह मंत्र बोलना चाहिये;
त्वदीयं वस्तु गोविन्दम् तुभ्यमेवम् समर्पयामि। गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वरः।।
इसका अर्थ यह है कि हे प्रभु! मेरे पास जो कुछ भी है वह सब आपका ही दिया हुआ है। और मैं आपका दिया हुआ, आपको ही समर्पित कर रहा हूँ। इसके बाद कुछ देर के लिए भोग को वहीं पर रखा रहने दीजिए। फिर भगवान के प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों में बाँट देना चाहिए।
पूजा के बाद भोग का क्या करें?
भगवान का भोग लगाने के बाद उसे अधिक से अधिक लोगों में प्रसाद स्वरूप बाँट देना चाहिए। इस भोग को अधिक समय तक मन्दिर में खुला रखकर नहीं छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से इस भोग में निगेटिविटी बढ़ने लगती है। जैसे भोग में प्रयुक्त मीठी वस्तुएं चींटियों को, मक्खियों को और दूसरे दूषित बैक्टीरिया और कीटाणुओं को आकर्षित करते हैं। यह सब उस भोग को दूषित कर देते हैं। इसलिए भोग लगाने के बाद तुरन्त उस भोग को अधिक से अधिक लोगों में बाँट देना चाहिए जिससे वह प्रसाद खत्म हो जाए। आप अपने परिवार में उस प्रसाद को बाँट कर समाप्त कर सकते हो। दूसरी बात यह ध्यान रखने योग्य है कि आप अधिक देर के लिए भोग या भोजन को खुला न रखें।
बिना भोग लगाए किसी को भी प्रसाद नहीं देना चाहिए।
निष्पत्ति
अथर्ववेद में यह बताया गया है कि आप भोजन को हमेशा भगवान को अर्पित करना न भूलें, उसके बाद ही खुद और अपने परिवार के लोगों के बीच इसे बाँट देना चाहिए। वास्तु शास्त्र में भी यह बताया गया है कि भगवान को भोग लगाकर भोजन करने से अन्न दोष दूर होता है। भगवान को भोग लगाने से घर में सुख और शांति बनी रहती है। और आपका स्वभाव विनीत होता चला जाता है। आपका मन छल और कपट से दूर होता चला जाता है।