दीपावली में लक्ष्मी पूजा क्यों की जाती है

दीपावली का त्यौहार हिन्दू धर्म में प्रकाश उत्सव के रूप में मनाया जाता है।  इस त्यौहार को अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में भी हम लोग मनाते हैं।  

दीपावली का आरंभ

दीपावली का त्यौहार भगवान राम के वनवास पूरा करके अयोध्या वापस लौटने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान राम की रावण पर विजय पाने के कारण इस तिथि को विजयादशमी कहा जाने लगा। विजय के उपरांत भगवान श्रीराम को लंका से अयोध्या वापस आना था परन्तु उनके पास उतना समय नहीं था कि वह पैदल चलकर तय तिथि को अयोध्या पहुँच जाते। और दूसरी समस्या यह थी कि भरत ने चित्रकूट में भगवान राम के सामने कसम खाई थी कि अगर तय समय पर भगवान राम अयोध्या वापस नहीं  लौटे तो वह आत्महत्या कर लेंगे।  इसलिए भगवान राम को शीघ्र ही अयोध्या पहुँचना आवश्यक था। इस समस्या का एक हल तो हनुमान के पास था कि वह प्रभु राम को माता सीता और लक्ष्मण के साथ अपने कंधों पर बैठाकर रातों रात अयोध्या पहुँचा देते परन्तु वहाँ तमाम वानर और रीक्ष भी भगवान के साथ अयोध्या आने के लिए तैयार हो गये थे। इस समस्या का समाधान विभीषण ने भगवान राम को बताया कि पुष्पक विमान से वह सभी के साथ अयोध्या समय पर पहुँच सकते हैं।

इस तरह पुष्पक विमान से रावण वध के बाद  20 दिन के अंदर ही कार्तिक मास की अमावस्या को भगवान राम अयोध्या पहुँचे तो अयोध्या वासियों ने उनका स्वागत घी के दिए जलाकर पूरी अयोध्या को सजाकर किया।  इसीलिए इस तिथि को दीपावली या दीवाली उत्सव के रूप में मनाया  जाता है।

 

दीपावली में लक्ष्मी पूजा

दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी की पूजा इस त्यौहार का अभिन्न अंग है। इस दौरान धन और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि माँ लक्ष्मी धन-दौलत, सुख- समृद्धि, ऐश्वर्य और वैभव की अधिष्ठात्री देवी  हैं। इसलिए उनके आशीर्वाद से मनुष्य को सुख- समृद्धि और सफलता मिलती है।

 

लक्ष्मी पूजा रात में क्यों की जाती है

वैदिक मान्यताओं के अनुसार माँ लक्ष्मी की पूजा का सबसे उत्तम समय प्रदोष काल अर्थात संध्याकाल होता है।  इसीलिए सूर्यास्त के समय को माँ लक्ष्मी की पूजा का सबसे शुभ प्रहर माना गया है।  वैदिक शास्त्रों में यह बताया गया है कि माता लक्ष्मी रात्रि में अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती पर भ्रमण करती हैं। आप यह भलीभाँति जानते हैं कि उल्लू को दिन के प्रकाश में दिखाई  नहीं  देता है और रात के अंधेरे में ही वह निकलता है। यह भी एक कारण है कि माँ लक्ष्मी की पूजा का सबसे उत्तम समय रात्रि काल ही होता है। इसलिए वह उसी समय पूजा करने से प्रसन्न होकर भक्तों को सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य का आशीर्वाद देती हैं। इसलिए दीपावली के दिन रात में पूजा करना अधिक शुभ और फलदायी माना जाता है।

 

दीपावाली की रात में लक्ष्मी पूजा करने का महत्व 

दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनायी जाती है। इस समय, चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता और चारों ओर रात का घुप्प अंधकार फैला होता है। ऐसे समय में जब  इस अंधकार के बीच  घरों में दिये या दीपक जलाए जाते हैं तो रात्रि जगमग हो जाती है, यह माता लक्ष्मी का स्वागत करने का एक अनूठा प्रयोग होता है। माँ लक्ष्मी को ‘ज्योति’ का प्रतीक माना गया है, और रात्रि के समय दीप जलाने से यह संकेत मिलता है कि हम अपने जीवन से अज्ञानता और अंधकार को दूर कर रहे हैं और ज्ञान, समृद्धि और प्रकाश को आत्मसात् कर रहे हैं।

एक दूसरा वैज्ञानिक पहलू यह भी है कि इस समय धान की फसल पक कर तैयार हो जाती है।  और धान हमारी संपन्नता और पौष्टिकता का सूचक है। इसलिए भी अपने ईष्ट देव व देवी लक्ष्मी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनकी पूजा दीपावली पर रात में  की जाती है। इसीलिए आपने देखा होगा कि लोग नये धान के उत्पाद जैसे नये धान का खीला, लइया, चूरा या पोहा आदि माँ  लक्ष्मी को मिठाई के साथ भोग में  अर्पित करते हैं। यह देखकर, आपको समझ में आ रहा होगा कि इन प्रतीकों का हमारे जीवन में कितना बड़ा महत्व है।

एक और मौसमी या वैज्ञानिक  कारण यह भी है कि यह त्योहार ऋतु परिवर्तन के संध्याकाल में  होता है।  रात के समय दीपक जलाने से दीपक में  जलने वाले तेल अथवा घी की सुगंध पर्यावरण को शुद्ध करती है। तमाम तरह के वायरस और बैक्टीरिया इस दीपक के जलने से निकलने वाली ऊष्मा और गंध से नष्ट हो जाते हैं और दूषित पर्यावरण शुद्ध हो जाता है।

दीपावली में लक्ष्मी पूजन की पौराणिक मान्यता

विष्णु पुराण में पौराणिक मान्यता यह है कि दीपावली के दिन ही समुद्र मंथन के समय माता लक्ष्मी के निकलने पर भगवान विष्णु ने पाया था। इसलिए इस दिन अंधकार में दीप जलाने और लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। इन्हीं सब कारणों से दीपावली की रात्रि के समय लक्ष्मी पूजा को अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।

 

माँ लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा का कारण 

माँ लक्ष्‍मी को धन और ऐश्‍वर्य की अधिष्ठात्री  देवी माना गया है। अब अगर आपके पास  धन और ऐश्‍वर्य ज्‍यादा आ जाए तो आपको अहंकार होना लाजिम है अर्थात आपकी बुद्धि भ्रष्‍ट होना निश्चित है।  क्योंकि माँ  लक्ष्मी किस पर सवार हैं- उल्लू पर। तो कहीं आपकी बुद्धि भी उल्लू जैसी न हो जाए इसलिए आप कहीं अहंकार के चलते धन को संभाल न पायें और धन को सद्कार्य में  लगाने की जगह उसका दुरुपयोग  न करने लगें इसलिए आपकी बुद्धि को नियंत्रित करने के लिए लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा का विधान शास्त्रों में  बनाया गया है। यद्यपि गणपति बुद्धि के देवता हैं और जहां गणपति का वास होता है, वहां सब शुभ ही शुभ होता है। इसलिए माँ लक्ष्‍मी के साथ गणेश जी का पूजन किया जाता है, ताकि घर में लक्ष्‍मी का वास हो और शुभता व समृद्धि भी  बनी रहे।

उपसंहार

दीपावली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी को भगवान विष्णु ने माँ लक्ष्मी की प्रेरणा से नरकासुर का वध किया था इसलिए भी इस कालरात्रि को लक्ष्मी पूजा की जाती है। और  चूंकि भगवान विष्णु इस समय योगनिद्रा में होते हैं इसलिए माँ लक्ष्मी के साथ उनकी पूजा देवोत्थानी एकादशी के अवसर पर देव- दीवाली के रूप में  की जाती है।