दुर्गा पूजा का उत्सव असत्य और आसुरी शक्तियों पर सत्य या शक्ति की जीत और शक्ति की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह उत्सव वर्ष में दो बार आश्विन महीने में शारदीय नवरात्र के रूप में और चैत्र महीने में बासंतीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर आप देख सकते हैं कि हिंदू लोग माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं। आप यह समझ लीजिये कि दुर्गा पूजा का पर्व हिन्दू धर्म में देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर के नाश और सभी आसुरी शक्तियों पर विजय के रूप में मनाया जाता है। आप यह कह सकते हैं कि दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर भलाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।
देवी भागवत के अनुसार दैत्यों का राजा महिषासुर बहुत शक्तिशाली राजा था। क्या आप जानते हैं कि इस राक्षस का नाम महिषासुर कैसे पड़ा? देवी भागवत में बताया गया है कि महिषासुर एक ऐसा दैत्य था जो भैंसे के आकार का भयंकर रूप वाला दुर्दांत राक्षस था। वह ब्रह्मर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दनु का पौत्र (पोता) और रम्भासुर का पुत्र तथा महिषी का भाई था। भैंसे के आकार का होने के कारण उसका नाम महिषासुर पड़ा। उसे उस काल में लोगों के बीच एक धोखेबाज राक्षस के रूप में जाना जाता है, जो अपना रूप और आकार बदलकर बुरे कार्य किया करता था।
महिषासुर ने अपने बल और शक्ति के अहंकार में किसी भी देवता या दानव से नहीं मरने का वरदान ब्रह्मा जी से माँगा। उसको अपने बल और पराक्रम का इतना घमंड था कि वह मानव जाति के पुरुष और महिलाओं को तुच्छ समझता था और इन दोनों को वह कीड़े – मकोड़ों के समान कभी भी मसल देने की शक्ति रखने के कारण उसने अपनी मृत्यु उनके द्वारा नही होने का वरदान माँगने का विचार किया। यहीं पर उसने गलती कर दी और यही भूल उसकी मृत्यु का कारण बनी।
ब्रह्मा जी से वरदान पाकर वह निरंकुश हो गया। अब महिषासुर पृथ्वी पर आंतक मचाने के बाद उसने इंद्र की नगरी अमरावती पर भी आक्रमण कर दिया। सभी देवताओं को पराजित कर महिषासुर इंद्र बन बैठा। उसने इंद्र का आसन छीन लिया। इसके बाद देवताओं ने विष्णु भगवान से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने महिषासुर के साथ कई वर्षों तक युद्ध किया। परंतु वह भी महिषासुर को जीत न सके। तब ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु समेत सभी देवता भगवान भोलेनाथ के पास गए। तब शंकर भगवान बहुत ही क्रोधित हुए।
तब भगवान विष्णु और शंकर दोनों ने देवताओं के साथ मिलकर महिषासुर की सेना के साथ युद्ध किया किंतु वे महिषासुर को नही हरा सके।
तब उन्होंने विचार किया कि महिषासुर का नाश करने के लिए किसी स्त्री शक्ति का प्रयोग करने की आवश्यकता है क्योंकि महिषासुर ने स्त्री और मानव के हाथों मरने का वरदान नहीं मांगा था। तीनों देवताओं ने विचार किया कि किसी स्त्री शक्ति को प्रकट करना चाहिए जिससे कि महिषासुर का उसकी सेना सहित नाश हो सके।
तब सभी देवताओं ने मिलकर एक शक्तिपुंज का निर्माण किया जिसमें से माँ दुर्गा का कात्यायनी रूप प्रकट हुआ। माँ दुर्गा का यह रूप अत्यंत भयानक था जिसके दस हाथ थे। फिर भगवान शिव ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र व सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र माँ कात्यायनी को दे दिए। इस प्रकार विभिन्न देवताओं के तेज से माँ कात्यायनी का देवी दुर्गा के रूप में प्रादुर्भाव हुआ।
माँ दुर्गा ने महिषासुर के साथ भयंकर युद्ध किया। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के दस दिन तक महिषासुर अपना रूप और आकर बदल बदल कर लड़ता रहा और दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर दिया। तब सभी देवताओं ने माँ दुर्गा की पूजा की और उनके ऊपर पुष्प वर्षा की। तभी से हर साल माँ दुर्गा की पूजा की जाती है। और आप देखते होंगे कि यह उत्सव बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाल में इसे काली पूजा के नाम से ख्याति प्राप्त है। जगह जगह पंडालों में महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है।
दुर्गा पूजा कैसे मनाया जाता है?
दुर्गा पूजा उत्सव मनाने के लिए आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को कलश स्थापना की जाती है और उसके बाद हर रोज मां दुर्गा के एक नए रूप की पूजा की जाती है। 9 दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की जाती है जिसमें मां दुर्गा के नौ रूप की पूजा होती है। अंतिम दिन महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा की पूजा की जाती है।
इस तरह अगर आप दुर्गा पूजा करना चाहते हैं तो आप इस उत्सव को आश्विन महीने की अमावस्या की रात से कलश स्थापना के साथ यह त्यौहार मनाए सकते हैं। इन नौ दिनों में आपको शुद्ध, पवित्र मन से माँ दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। आप दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों का नियमित पाठ करें और पाठ पूरा करने के बाद माँ दुर्गा की आरती करें। हम आपको बता दें कि बहुत से लोग इन नौ दिनों में उपवास करते हैं। कुछ लोग पूरी तरह से निर्जल व्रत भी करते हैं। और कुछ लोगों कठिन साधना करते हैं। इन नौ दिनों में शक्ति के उपासक और तंत्र मंत्र के साधक माँ दुर्गा की शक्तियों को सिद्ध करने की घोर साधना करते हैं। माता के तमाम शक्तिपीठों में दूर दूर से लोग जाकर साधना करते हैं। आप इन नौ दिनों में अपने शहर में माता के मन्दिरों में खूब भीड़ भाड़ देखते होंगे। लोग सड़कों पर, पार्कों में, अपने घरों में और मन्दिरों में माता का जगराता अर्थात जागरण करते हैं।
दुर्गा पूजा का मंत्र क्या है?
माँ दुर्गा की पूजा की पूरी विधि दुर्गा सप्तशती में विस्तार से बताई गयी है। यदि आप पूरी सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते हैं तो आप संक्षेप में दुर्गा सप्तश्लोकी का पाठ कर सकते हैं।
माँ दुर्गा का सबसे प्रिय मंत्र जो उनको प्रसन्न करने के लिए भावपूर्ण ढंग से गाया जाता है यह मंत्र सभी विपत्तियों का नाश करने वाला है। मंत्र इस प्रकार है;
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
माँ दुर्गा का नवार्ण मंत्र;
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे
माँ दुर्गा का मूल मंत्र है;
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नवरात्रि और अन्य दिनों में सुबह शाम आप इस मंत्र का जप कर सकते हैं। यह सबके कल्याण करने वाला मंत्र है;
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
दूसरा मंत्र
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते।।
सभी बाधाओं से मुक्ति के लिए आप इस मंत्र का जप करें।
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥
सर्भी बाधाओं की शांति के लिए मंत्र;
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।।