गंगा आरती क्यों की जाती है?

सनातन धर्म में गंगा नदी को मोक्ष दायिनी नदी कहा गया है। क्या आप जानते हैं कि  यह नदी स्वयं भगवान विष्णु के चरणों से निकली है। और हिमालय की चोटियों से कलकलनाद करते हुए तमाम पहाड़ों को पार करके हरिद्वार से लेकर एक लंबे मैदानी भूभाग से बहते बहते गंगासागर में जाकर समुद्र में मिल जाती है। क्या आपको पता है कि गंगा नदी गंगा सागर में क्यों मिलती है। उत्तराखंड स्थान लेकर बंगाल तक के भाग को सिंचित करते हुए  इस तरह यह गंगा सागर में जाकर महाराज भगीरथ के पुरखों को मुक्ति देती हैं। और एक बड़े भूभाग के लोगों को अपने जल से तृप्त करती है। सदियों से हिन्दू गंगा नदी को पवित्र नदी और माँ  मानते चले आए हैं। इसलिए हिन्दू धर्म में गंगा नदी को जीवन दायिनी कहा गया है। गंगा जल की पवित्रता का घर घर बड़ा आदर किया जाता है।  सभी शुभ कार्य, पूजा और अनुष्ठान बिना गंगाजल पूरे नहीं होते हैं।  इसलिए गंगा नदी के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए हिन्दू धर्म में गंगा आरती करने की परंपरा चली आ रही है।

 

हिंदू शास्त्रों में गंगा नदी का क्या महत्व है?

हिन्दू शास्त्रों में  कहा गया है कि भगवान विष्णु की इच्छा से गंगा नदी को मानव और प्रकृति के कल्याण के लिए स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित किया गया था। आपको मैं गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरण की ऐतिहासिक घटना बताता हूँ।

हिंदू धर्म में गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरण के पीछे महाराज भगीरथ की  बड़ी तपस्या शामिल है। जब सतयुग में महाराज सागर के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने कपिल मुनि के आश्रम में चुराकर बांध दिया था। चूंकि कपिल मुनि ईश्वर की साधना में लीन समाधि में बैठे थे। उनको इस बात का कुछ भी पता नहीं था। जब सगर के वंशज घोड़ा को ढूंढते ढूंढते कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो उन्होंने घोड़े को वहां बँधा पाया तब उन्होंने कपिल मुनि का बड़ा अपमान किया। मुनि की तपस्या भंग होने पर उनके क्रोधित नेत्रों से निकलने वाले तेज पुंज में  सगर के सभी पुत्र भस्म हो गये। तब से कई पीढ़ियों तक कोई उनको मुक्त नहीं कर सका। फिर सगर के वंश में भगीरथ पैदा हुए जिन्होंने अपनी तपस्या से गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने में सफलता पाई।  तब उनके पूर्वज मुक्त हुए।  इसलिए हिन्दू धर्म में गंगा नदी को पवित्र नदी माना जाता है।  और इसी कारण से इसका बड़ा महत्व है।

 

लोग गंगा में स्नान क्यों करते हैं?

हिन्दू धर्म में  गंगा नदी की पवित्रता गुणगान किया जाता है।  शास्त्रों में कहा गया है कि गंगा नदी भगवान विष्णु के चरणों से निकलने के कारण उनके चरणामृत के समान पवित्र हैं इसलिए गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के तमाम पाप नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि लोग गंगा नदी में स्नान करते हैं। आपने देखा होगा  कि हर अमावस्या  के दिन गंगा नदी में स्नान करते हैं इससे मनुष्य कई तरह के दुखों से मुक्त हो जाता है।  इसलिए ज्योतिष शास्त्र में अमावस्या के साथ-साथ सभी संक्रांति, मकर संक्रांति, बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि जैसी अन्य कई पुण्य तिथियों पर गंगा नदी में स्नान करने के लिए बताया गया है। आप कुंभ के अवसर पर गंगा-स्नान के बारे में जरूर सुना होगा।   बारह वर्ष में एक बार प्रयाग में लगने वाले कुंभ मेले में विश्व भर से सनातन धर्म में आस्था रखने वाले हिन्दू और गैर हिन्दू भी स्नान करने के लिए आते हैं।  इसके अलावा हर साल प्रयाग में माघ मेला लगता है जो पूरे एक महीने चलता है।  इस महीने में हिन्दुओं की आस्था का प्रत्यक्ष प्रमाण देखा जा सकता है। जब ठिठुरती ठंड में वहाँ लोग कल्पवास करते हैं और नित्य गंगा स्नान करते हैं।  मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा नदी के सभी घाटों पर लोग स्नान करके दान देते हैं।  और पुण्य का लाभ कमाते हैं।

 

गंगा जल का महत्व क्या है?

आपको गंगाजल का महत्व इस बात से पता चल जाएगा कि हिन्दू धर्म में  लोग पवित्र गंगा जल को अपने घरों में संभाल कर रखते हैं।  गंगाजल में इतने मिनरल्स होते हैं कि इस जल में कीड़े नहीं पड़ते। इसीलिए गंगाजल को लोगों सालों साल अपने घर में सुरक्षित रखे रहते हैं।  इस जल को भगवान विष्णु की कृपा मानकर सभी शुभ और पवित्र कामों में उपयोग किया जाता है।  यहाँ तक कि हिन्दू लोग मरते हुए व्यक्ति के मुँह में गंगाजल इसलिए डालते हैं कि जिससे उस व्यक्ति को मोक्ष मिल जाए। आपके घर में अगर कोई भगवान सत्य नारायण की कथा हो रही हो तो उस कथा में  गंगाजल और तुलसी दल के बिना भगवान प्रसन्न नहीं होते हैं।  इसके साथ-साथ समय समय-समय पर अन्य पूजा और अनुष्ठान बिना गंगाजल के पूरे नहीं होते हैं।  शास्त्रों के अनुसार अगर आप किसी पुण्य काल में गंगा नदी में स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो आप गंगाजल की पवित्र बूंदे अपने स्नान वाले जल में डालकर गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।  इससे  आपको गंगाजल की पवित्रता का पता चल रहा होगा। गंगा केवल एक नदी ही नहीं है बल्कि वह आपके लिए मोक्ष दायिनी भी है। आपको यह भी अच्छी तरह से पता होना चाहिए कि हिन्दू धर्म में लोक और परलोक दोनों को सुधारने के लिए लोग गंगा को पूजते हैं।  यहाँ तक कि लोग मरने के बाद अपने शव का दाह संस्कार गंगा नदी के तट पर ही करवाने की इच्छा रखते हैं  और आपने लोगों को गंगा नदी में  मृत शरीर के अवशेष यथा अस्थियों कि विसर्जन भी गंगा नदी में करते हैं  यह उनकी मान्यता और विश्वास है कि इससे मरने वाली आत्मा तृप्त होती है और वह  इधर उधर नहीं  भटकती है।

 

घर में गंगा जल छिड़कने से क्या होता है

आपने अपने घरों में अक्सर गंगाजल के छिड़काव करते हुए अपने घर के बड़े बूढ़ों को देखा होगा।  क्या कभी आपने उनसे पूछा कि वह इस तरह घर में गंगाजल क्यों छिड़क रहे हैं।  शायद आपको  घर के बुजुर्गों ने बताया होगा कि गंगा जल से स्थान और वस्तुओं को पवित्र करने की एक गहरी समझ और धारणा है। उनका विश्वास है कि गंगा जल से आचमन से मनुष्य पवित्र हो जाता है इसलिए किसी बीमार व्यक्ति को गंगा जल का आचमन करवाया जाता है।  पूजा के आरम्भ में आप अपनी पवित्रता के लिए गंगाजल से आचमन करते हैं।  सनातन परंपरा में यह मान्यता है कि गंगा जल के छिड़कने से आपका घर पवित्र हो जाता है। इसलिए आपने अपने घर में बुजुर्गों को घर की साफ-सफाई करने के बाद गंगा जल से घर को पवित्र करते हुए देखा होगा।

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