माला का जप कैसे करें?

माला जप करने का बड़ा पुराना इतिहास है।  हमारे आदि ऋषि मुनि यज्ञ और जप तप में  ही अपना जीवन समर्पित कर देते थे। वैदिक काल से ही यज्ञ, जप और तप ईश्वर की साधना का उपाय था। धीरे-धीरे ईश्वर की पूजा के तमाम अन्य विधान जुड़ते चले गये।

ज्योतिष के अनुसार कई तरह की  माला से जप किया जाता है। इसमें शंख माला से जप करने का सौ गुना फल बताया गया है। इसी प्रकार मूंगे की माला, स्फटिक की माला, मोती की माला, कमल गट्टे की माला, कुशा मूल और रुद्राक्ष की माला आदि से जप करने पर अनन्त गुना फल मिलता है। आपको पता होना चाहिए कि मंत्र जप कब और कैसे करना चाहिए। ज्योतिष में  मंत्र जप के लिए गुरु पुष्य या रवि पुष्य नक्षत्र शुभ माने जाते हैं। जबकि, माघ, फाल्गुन, चैत्र, बैशाख, श्रावण और भाद्रपद महीने में मंत्र जप सिद्धिदायक होते हैं। इसी प्रकार अमावस्या, सोमावती अमावस्या, पूर्णिमा और ग्रहण काल में  भी जप करने का विधान बताया गया है।  इसके लिए उपयुक्त जप माला आपके पास होनी चाहिए।  जप माला किस खास प्रकार की हो उसमें कितने दाने या मनके होने चाहिए यह सब महत्वपूर्ण तथ्य हैं।

 

माला में कितने दाने होने चाहिए?

एक जप माला जिसे आप आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में ले सकते हैं। ऐसी माला को प्रार्थना में उपयोग के लिए या ईश्वर के नाम जप करने के लिए आप देखते हैं वह  माला  सामान्य तौर पर १०८दानों या  मनको की बनी होती है। इसके अलावा 9,  27 और 54 मनकों या दानों की माला का भी उपयोग किया जाता है। लेकिन ज्यादातर  108 मनकों की माला का माला का उपयोग अधिकतर प्रचलन में  है। माला का प्रयोग किसी मंत्र या देवता के नाम या ईश्वर के नाम को दोहराने या जपने के लिए होता है। यह इसलिए कि आप  जप करते हुए या मानसिक रूप से दोहराते  समय जप की गिनती याद रख सकें।

किसी भी जप माला में  १०९ वाँ मनका को सुमेरू या   या गुरु मनका कहा जाता है। जब आप मंत्र जाप करते हैं तो  गिनती हमेशा सुमेरु के अगले  मनका से  शुरू करनी चाहिए। हमारी  हिंदू संस्कृति में  वैदिक परंपरा के अनुसार, अगर आपको  एक से अधिक माला की संख्या का जप करना है तो आप इस सुमेर को पार मत कीजिए। आप  सुमेरू लांघने के बजाय वहाँ से माला को पलट कर वापस  लौट कर गिनती आरम्भ करें।  इससे एक माला पूरा होने के बाद फिर आप का जप चलता रहता है।

आप यह प्रश्न कर सकते हैं कि माला में 108 मनके क्यों होते हैं?  तो इसके जवाब में  मैं  आपके सामने सनातन परंपरा के वैज्ञानिक दृष्टिकोण  का परिचय देना चाहूँगा जिसमें संख्या 108 मनकों का  कई हिंदू और बौद्ध परंपराओं में विशेष धार्मिक महत्व होता है ।

  • पहला यह कि ज्योतिष के अनुसार 27 नक्षत्र होता हैं और हर नक्षत्र के  चार चरण होते हैं  इस प्रकार  27 X 4 चरण (भाग) = 108
  • दूसरा तर्क यह है कि 12 राशियों और 9 ग्रहों गुणनफल  12 (राशि) X 9 (ग्रह) = 108
  • तीसरा यह है कि उपनिषद या वेदों के ग्रंथों का कुल  = 108

इस तरह से  जब हम संख्या 108 पढ़ते या सुनते हैं, तो हम वास्तव में पूरे ब्रह्मांड को याद कर रहे होते हैं।  जो आपको इस बात की याद दिलाता है कि ब्रह्मांड  सर्वव्यापी है। और यह  उसकी स्वयं की सहज प्रकृति है।

 

 माला कितने प्रकार की होती है 

 

जप माला कई तरह की होती हैं जैसे रुद्राक्ष की माला, चन्दन, कमलगट्टे  और तुलसी की माला, मोतियों की माला, मूंगे और स्फटिक की माला इत्यादि।

माला को बनाने के लिए माला के मनका बनाने के लिए कई तरह की चीजों का उपयोग किया जाता है। जैसे रुद्राक्ष वृक्ष के बीज से बनी माला को शिवा और शिव के भक्त पवित्र मानते हैं। तो वहीं पर तुलसी के पौधे की लकड़ी से बने मनकों की माला को वैष्णव, अर्थात भगवान विष्णु के भक्त उपयोग करते हैं सम्मानित मानते हैं। कुछ अन्य लोग चंदन की माला और कुछ माँ लक्ष्मी की  उपासना करने वाले भक्त  कमल के बीज अर्थात कमलगट्टे की माला साधना में उपयोग करते हैं। माला में मूंगे, मोती, स्फटिक, कार्नेलियन और एमेथिस्ट जैसे कीमती पत्थरों का भी उपयोग किया जा सकता है।

 

माला को शुद्ध कैसे करें?

जब कभी भी आप माला जप आरम्भ करें, तो सबसे पहले  माला को शुद्ध जल से अवश्य धो लें। साथ ही माला का तिलक करके धूप दीप जरूर दिखाएं। उसके बाद प्रार्थना करें।

 

माला जपने के नियम

किसी भी मंत्र या नाम को जपने के लिए माला जप करने के लिए आपके पास एक पवित्र आसन होना चाहिए जिस जप कर सकें।  इस उद्देश्य के लिए आप कुश का आसन या लाल रःग का ऊनी आसन का चुनाव कर सकते हैं।  कुश का आसन उत्तम माना गया है।

दूसरा नियम यह है कि जप करते समय आपका मुँह पूरब दिशा की ओर होना चाहिए।

आप जब माला से जप करें तो यह ध्यान रखें कि  कभी भी सुमेरू को न लाँघे। माला जप करते समय सुमेरु को कभी क्रास न करें। बल्कि सुमेरु के पास पहुंचते ही आपको माला को पलट कर वापस जप करना चाहिए।

मंत्र जाप से पहले आपकी व्यक्तिगत शुद्धि आवश्यक है इसलिए दैनिक क्रिया से निवृत्त होने के बाद स्नान करने के बाद ही माला जप करना चाहिए।

माला जप करने वाले स्थान को विधिवत साफ करके  एक स्वच्छ आसन पर शांतचित्त होकर बैठिये। अपना ध्यान केवल जिस मंत्र का जप कर रहे हैं  उसी पर केन्द्रित करते रहिये। हालांकि आपका चंचल मन इधर उधर भागेगा फिर भी आप अपने मन को कंट्रोल करते हुए मंत्र पर ही फोकस करते रहिये।

जप करने के बाद आपको अपने आसन को इधर-उधर नहीं छोड़ देना चाहिए और न ही आसन को पैर से हटाना चाहिए। आप अपने आसन को एक जगह संभाल कर रख दीजिए क्योंकि अगली बार फिर उसी आसन की आपको आवश्यकता पड़ेगी।

सामान्य रूप से जप करने के लिए तुलसी की माला उपयोगी रहती है। लेकिन यदि आप  किसी विशेष कार्य सिद्धि के लिए जप कर रहे हैं तो उस देवी-देवता के अनुसार ही माला लेनी चाहिए। जैसे भगवान शिव के लिए रुद्राक्ष की माला से जप करना सर्वोत्तम है।

लक्ष्मी जी के लिए जप करना चाहते हैं तो स्फटिक या कमलगट्टे की माला श्रेष्ठ है।

मंत्र जप करने के लिए एक शांत स्थान को चुनना चाहिए। आप अपने घर में  या किसी मन्दिर में  या किसी अन्य पवित्र तीर्थस्थान में  माला जप कर सकते हैं।

आपको जप करने में किसी प्रकार की कोई बाधा न पड़े और ध्यान न भटके इसलिए प्रातः काल का समय सबसे उत्तम रहता है। क्योंकि इस समय वातावरण शांत, शुद्ध और सकारात्मक रहता है।

यदि आप  हमेशा जप करते हैं या किसी  संकल्प बद्ध हुए हैं  तो फिर आपको प्रतिदिन एक ही स्थान और एक निश्चित समय पर भी मंत्र जाप करना चाहिए।

मंत्र जाप करते समय माला को खुला न रखें। माला सदैव गौमुखी के अंदर ढक कर ही रखनी चाहिए।

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