हम आरती घड़ी की दिशा में क्यों करते हैं?

आप चाहे आरती करो या किसी देवता की परिक्रमा, शास्त्रों में इसे दक्षिणावर्त दिशा में ही करने के लिए बताया गया है। जब हम अपने दाहिने हाथ की ओर घूमते हैं तो हमें सकारात्मक प्राण ऊर्जा मिलती है ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि पृथ्वी जिस ग्रह पर हम और आप सभी लोग रह रहे हैं वह अपनी धुरी पर दक्षिणावर्ती दिशा में घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा भी  दक्षिणावर्त दिशा में करती है। और इस ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष स्रोत सूर्य ही है।  इसलिए ऐसा माना गया है कि धारा के प्रवाह की दिशा में  चलने पर आपको ऊर्जा आसानी से मिल सकती है। यही सकारात्मक ऊर्जा आपके जीवन को आगे बढ़ाती है। इसी सकारात्मक ऊर्जा से हमारा आपका और सबका शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य, धन, मन बुद्धि और चेतना सभी सक्रिय रहते है।

स्कंद पुराण में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति यंत्र- मंत्र, पूजा विधि नहीं जानता, फिर भी वह भगवान की कहीं पर हो रही आरती में श्रद्धा पूर्वक शामिल हो जाता है तो भी उसकी प्रार्थना भगवान स्वीकार कर लेते हैं।

 

घड़ी की दिशा का महत्व 

जब घड़ी बनाई गई और उसकी सुईयों की गति की दिशा तय की गई उस समय भी इस ब्रह्माण्ड में ऊर्जा के संचालन का ध्यान रखा गया होगा। शायद इसीलिए घड़ी की सुइयां दक्षिणावर्त दिशा में घूमती हैं।

दक्षिणावर्ती दिशा की गति को सकारात्मक ऊर्जा की दिशा माना गया।  विज्ञान की भाषा में इलेक्ट्रॉन किसी एटम की आर्बिट में न्यूक्लियस के सराउंडिंग क्लाकवाइज डाइरेक्शन में चक्कर लगाते हैं।  पृथ्वी पर चुम्बकीय तरंगें भी उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर दक्षिणावर्ती दिशा में ही प्रवाहित होती हैं।

आरती घड़ी की दिशा में क्यों की जाती है?

जब आप किसी  देवी-देवता की आरती करते हैं तो देवता का चित्र या मूर्ति केन्द्र में रहती है। और आपको ऊर्जा उसी केन्द्र से मिलने वाली होती है।  आरती करते समय आपका ध्यान ईश्वर के ऊपर केन्द्रित होता है। ऐसे समय आप ईश्वर की प्रार्थना में लीन होकर के  ईश्वर की आंखों में देखते हुए भगवान के रूप पर ध्यान केंद्रित करते हैं। तब आरती की ज्वाला के प्रकाश में आप ईश्वर के विभिन्न अंगों को प्रकाशित होते हुए देखते हैं। जब आप आरती को ईश्वर की मूर्ति या चित्र के चारों ओर घड़ी की दिशा में गोल- गोल घुमाते हैं तब आप खुद को ऊर्जा से ओतप्रोत पाते हैं।  श्रद्धा भाव के साथ ऐसा करते हुए  प्रत्येक चक्र में या एक-दो चक्र के बाद, आप आरती को निचले सिरे अर्थात घड़ी में 6 बजे की पोजीशन पर आरती थोड़ा आगे पीछे घुमा कर अर्धचंद्राकार रूप देते हैं और फिर आरती का पूरा चक्र लगाते हैं। ऐसा करने से आपको अप्रत्याशित दुःख को सहने की शक्ति प्राप्त होती है। यही शक्ति आपको ईश्वर के प्रति श्रद्धावान और विनम्र बनाए रखती है तथा खुशी के क्षणों में आपको ईश्वर की याद दिलाती रहती है।

आरती आपके व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है सांसारिक गतिविधियों के साथ -साथ आप अपने को ईश्वर के निकट पाने लगते हैं। आरती आपके  अहंकार को कम करती है और आप चाहे जितने ऊँचे सामाजिक या आर्थिक पद पर हों उसके बावजूद भी आरती आपको विनम्र और दयालु बने रहने में मदद करती है।

घड़ी की दिशा में आरती घुमाने से आपकी सोंच में निरंतर सकारात्मकता का प्रवाह  होता है और ऐसा महर्षियों के द्वारा बताया गया है कि आरती कदम कदम पर आपको सतर्क रहने की चेतावनी भी देती है ताकि आपके ऊपर भौतिक सुख और अनंत  इच्छाओं की ताकत हावी न होने पाये। जैसे आरती के दीपक की जलती हुई बत्ती स्वयं जलकर प्रकाश प्रदान करती है और अंधकार को दूर भगाती है, उसी तरह यह आरती आपको भी भौतिक दुनिया के प्रभाव से दूर रखकर ईश्वर के प्रति समर्पित रहने का संदेश देती है।

आरती का दीपक

अगर आरती का दीपक मिट्टी का है तो उसे दुबारा आरती के लिए प्रयोग में नहीं लेना चाहिए।  यदि धातु का है तो उसे साफ करके मांज करके ही प्रयोग किया जा सकता है।  सबसे श्रेष्ठ सोने का दीपक उसके बाद चाँदी का और उसके बाद पीतल का  माना गया है। आरती के दीपक को आरती के बाद सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए ऐसा करने से उसमें की इलेक्ट्रिक एनर्जी पृथ्वी में चली जाती है।  दीपक को किसी लकड़ी के पाटे पर रखकर आचमन कराने के बाद देवताओं और सभी दिशाओं को दिखाने के बाद आप स्वयं उसकी ऊष्मा को ग्रहण करें और अपने साथ उपस्थित सभी लोगों को ग्रहण करवायें।

 

वास्तु शास्त्र में  घड़ी की दिशा का महत्व 

 

वास्तु शास्त्र के अनुसार पृथ्वी पर सकारात्मक ऊर्जा का हमेशा प्रवाह उत्तर दिशा से होकर दक्षिण दिशा की ओर  होता है। इसलिए घड़ी की दिशा में आरती करने और देवता की परिक्रमा लगाने से हमारे अंदर के सातों ऊर्जा चक्र एक लाइन में आ जाते हैं अर्थात अलाइन हो जाते हैं।  यह प्रोसेस एक तरह से हमारी प्राण ऊर्जा को हमारे अंदर भरने के समान है और हम सकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं। इसी तरह से हमारे सनातन परंपरा में स्वास्तिक चिन्ह जो बनाया जाता है वह भी घड़ी के सुई की गति की दिशा में बनाया जाता है। यह चिन्ह हमारी हिन्दू संस्कृति में बहुत ही शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। पृथ्वी पर सूर्य के उदय होने से लेकर अस्त होने की दिशा भी घड़ी की दिशा में होती है इसलिए घड़ी की सुइयों के घूमने की दिशा को सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह की दिशा माना गया है।

उपसंहार

आरती शुद्ध और पवित्र मन से करनी चाहिए। स्कन्द पुराण में कहा गया है कि आरती दक्षिणावर्त दिशा में घुमाते हुए  सबसे पहले देवी या देवता के चरणों में चार बार उसके बाद नाभि के सामने दो बार और चेहरे की एक बार आरती करनी चाहिए फिर सात बार पूरी मूर्ति या चित्र की आरती करनी चाहिए।  इस तरह 14 बार आरती करना ईश्वर के चौदह भुवनों अर्थात प्लेनेट्स की यात्रा करने के समान फलदायी माना गया है। घड़ी की सुइयों के घूमने की दिशा हमारे जीवन चक्र से सीधे तौर पर जुड़े हुई है और इस दिशा को पाजिटिव दिशा माना जाता है।  विज्ञान भी इस बात को कई बार सिद्ध कर चुका है। जब आप दक्षिणावर्त दिशा में घूमते हैं तो आपकी ऊर्जा का संचार ऊपर की ओर होता है। इसलिए जब आप आरती करते हैं तो आपको आरती को घड़ी की दिशा में ही घुमाने के लिए बताया जाता है। ताकि आप ईश्वर से पाॅजिटिव एनर्जी प्राप्त कर सकें।

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