हम सभी सनातन परंपरा में विश्वास रखने वाले लोग अपने घर या मंदिर में पूजा करते हैं। दैनिक पूजा के अलावा कभी कथा या अन्य अवसर पर विभिन्न तरह के त्यौहारों पर पूजा करते हैं जैसे वर्ष में दो बार नवरात्रि में माँ दुर्गा के विविध रूपों की पूजा इत्यादि। पूजा के समापन होने पर आरती करने की विधि की जाती है। यह आरती सभी पूजा के बाद जरूरी होती है। बस फर्क इतना है कि इसका स्वरूप अलग अलग होता है। अगर आप किसी के यहाँ अखण्ड रामायण के पाठ या भगवान सत्यनारायण की कथा या किसी भागवत कथा आदि में शामिल नहीं हो पा रहे हैं और आप उसमें उपस्थित रहना चाहते हैं परन्तु समय की कमी या किसी अन्य कारण से समिलित्त नहीं हो पाते हैं तो आप आरती में शामिल होकर पूरी पूजा का फल प्राप्त कर सकते है। इसलिए पूजा में आरती का विशेष स्थान होता है।
विभिन्न तरह की आरती
हिन्दू परम्परा में किसी देवता के मन्दिर में सात समय आरती होती है यह सुबह देवता के उठने से लेकर रात में सोने के समय अलग-अलग समय पर होती हैं। यह आरतियां क्रमशः मंगला आरती, पूजा आरती, श्रृंगार आरती, भोग आरती, धूप आरती, संध्या आरती, शयन आरती हैं परन्तु आप अपने घर में सुबह शाम दो बार आरती कर सकते हैं। आरती कपूर, घी तेल, धूप आदि से की जाती है। उज्जैन में तो महाकाल की भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है। आपने शायद ध्यान दिया हो कि लोग मन्दिरों में आरती के समय इकट्ठा होते हैं। मतलब यह कि वह आरती में शामिल होने के लिए ही मन्दिर जाते हैं।
आरती कैसे की जाती है
आरती करने के लिए विशेष तैयारी की जाती है। क्योंकि आरती करके आप अपने ईष्ट देव को रिझा सकते हैं, उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। इसलिए आरती की अनेक विधियां और विधाएं हैं। जैसे 1, 3, 5 या 7 बत्ती वाले दीपक से आरती करना। कपूर और घी के दीपक की आरती को शास्त्रों में शुभ और सर्वोत्तम माना गया है। पांच बत्तियों वाले दीप की आरती को ‘पंचप्रदीप’ आरती कहा जाता है।
इसके अतिरिक्त किसी विशिष्ट आयोजन पर कई बत्तियों वाले दीप स्टैण्ड से भी आपने आरती करते हुए देखा होगा। अलग-अलग संख्या वाले दीप से आरती करने का अपना अलग अलग महत्व शास्त्रों में बताया गया है।
आपको अपने घर में आरती के लिए दीपक जलाने के बाद, दीपक को प्रणाम करके यह मंत्र बोलना चाहिए;-
शुभम करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा। शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोऽस्तु ते।
इसके बाद अपने आराध्य की आरती करनी चाहिए।
आरती के समय क्या होता है
आरती भगवान को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। जब ईश्वर आपसे प्रसन्न होते हैं तो वह आपके ऊपर अपनी कृपा बरसातें हैं। इसलिए आपको आरती के समय शंख, घंटे, घड़ियाल आदि का वादन भी करना चाहिए। मन्दिरों में बड़े बड़े ड्रम, नगाड़े, झांझ, करताल जैसे तमाम तरह के वाद्ययंत्रों को बजाय जाता है।
इसके साथ-साथ आरती करते समय अपने आराध्य की स्तुति, आरती भी गाई जाती है। ऐसा करने से ईश्वर आपसे प्रसन्न होते हैं।
आरती करते समय आपको सबसे पहले अपने आराध्य के चरणों से आरती प्रारम्भ करनी चाहिए। आपको अपने ईष्ट देव के चरणों में चार बार, नाभि के सामने दो बार और भगवान के मुख के सामने एक बार आरती घुमानी चाहिए।
इसके बाद फिर भगवान के पूरे शरीर की चरणों से मस्तक तक सात बार घड़ी की दिशा में आरती घुमानी चाहिए। इस प्रकार कुल 14 बार आरती घुमाकर भगवान के सामने दीपक चक्कर आराधना करते हुए दीप आरती को जल से आचमन करवाना चाहिए। वैदिक परम्परा में आरती का ऐसा विधान बताया गया है।
शास्त्रीय विधान के अनुसार आरती के अंत में कर्पूर आरती करनी चाहिए। और आरती के बाद पुष्पांजलि मंत्र बोलते हुए अर्पण करना चाहिए। आप इस बात का ध्यान रखिए कि दीपक का मुख पूर्व दिशा में रखने पर आपकी आयु में वृद्धि होती है, उत्तर में रखने पर धन धान्य में वृद्धि होती है, दीपक का फेस पश्चिम दिशा में रखने पर दु:ख और दक्षिण की ओर करके रखने पर हानि होती है।
आरती लेते समय आपको अपने दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सिर के मध्य भाग पर लगाना चाहिए। और यह ध्यान करना चाहिए कि आरती की ऊष्मा आपके शरीर में प्रवेश कर रही है।
इसके साथ ही आपको आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट तक हाथ नहीं धोने चाहिए।
आरती करने के समय सावधानी
आपको ईश्वर की आरती करते समय कुछ विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। जैसे
- आप आरती करते समय या आरती पूरी करने के बाद दीपक को कभी भी सीधे जमीन पर न रखें। आरती के दीपक या थाली को किसी लकड़ी के पाटे या आसन पर ही रखना चाहिए।
- घी का दीपक भगवान के दक्षिण हाथ की ओर और तेल का दीपक बाएं हाथ की ओर रखना चाहिए।
- तेल और घी को मिलाकर कभी भी दीपक नहीं जलाना चाहिए।
- पूजा में जलाए गये अखण्ड ज्योति से कभी आरती नहीं करनी चाहिए। आरती के लिए अलग दीपक का उपयोग करना चाहिए।
- आपको कभी भी बैठकर ईश्वर की आरती। नहीं करना चाहिए।
- आरती करते समय उस पर से कभी भी हाथ नहीं घुमाना चाहिए। पूरी आरती होने के बाद उसे जल से आचमन करवाना चाहिए फिर भगवान को आरती समर्पित करने के बाद ही सभी को आरती लेना चाहिए।
- आरती के बीच में बोलना, चीखना लड़ना झगड़ना या अन्य कोई दूसरा काम नहीं करना चाहिए। इससे आपके आराध्य का अपमान होता है।
- आपको आरती करने से पहले ही ऐसा प्रयास करना चाहिए कि आरती करते समय कभी भी बीच में बुझने न पाये।
- आरती को कभी भी उल्टा अर्थात वामावर्त दिशा में नहीं घुमाना चाहिए।
निष्पत्ति
आरती करते समय आपके मन में अपने आराध्य के लिए आदर, श्रद्धा, समर्पण, विश्वास और कृतज्ञता का भाव होना चाहिए। अपने आराध्य की आरती भजन करते हुए करनी चाहिए और ईश्वर से अपने प्रति आशीर्वाद की कामना करनी चाहिए। आरती करते समय वातावरण सुगंध युक्त श्रद्धा और प्रेम से परिपूर्ण होना चाहिए। आरती करने से वातावरण शुद्ध होता है। आसपास सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। घी, कपूर, लौंग, चन्दन आदि की सुगंध से बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। आरती में शामिल सभी के मन को मानसिक शांति मिलती है।